इतिहास के पन्ने से जवाहर लाल नेहरू और एडविना का किस्सा

साल 1947.
इस साल को भारत देश की आजादी के साल के तौर पर याद किया जाता है. 

इस साल केवल भारत को आजादी ही नहीं मिल थी.  

बल्कि और भी बहुत कुछ था जो भारत में चल रहा था. 

ब्रिटेन से बुलाए गए रेडक्लिफ भारत को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में बांटने के लिए नक्शे पर लकीरें खींच रहे थे.

लॉर्ड माउंटबेटन रेडक्लिफ की मदद कर रहे थे. 

बंटवारे की आग में भारत के अनेक हिस्से जल रहे थे. 

इस सबके बीच सरदार पटेल सारे राजा-महाराजाओं को एक छत के नीचे लाने के अभियान पर निकल चुके थे. 

और नेहरू..... जी हां...... नेहरू क्या कर रहे थे. 

वैसे तो नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री होने वाले थे, 

लेकिन इससे भी अलग वे लॉर्ड माउंटबेटन की पत्नी के साथ मुहब्बत की नई इबारत लिखने के लिए कदम आगे बढ़ा चुके थे. 

जी हां दोस्तो..... आज हम नेहरू और एडविना की दोस्ती की कहानी लेकर आए हैं. 

उस वक्त नेहरू की उम्र 58 और एडविना 47 साल की थीं. 

माउंटबेटन खुद नेहरू और एडविना की बढ़ती दोस्ती को करीब से देख रहे थे. 

लेकिन वो खामोश थे. 

नेहरू और एडविना एक—दूसरे को चिट्ठियां लिखा करते थे. नेहरू अकसर एडविना को गिफ्ट दिया करते थे. 

लेखक एलेक्स वॉन ने अपनी किताब ‘इंडियन समर’ में इन चिट्ठियों का ज़िक्र किया है. 

नेहरू ने एक बार उड़ीसा के सूर्य मंदिर में उकेरी हुई कामोत्तेजक तस्वीरों की किताब एडविना को भेजी और साथ में लिखा, 

‘इस किताब को पढ़कर और देखकर एक बार तो मेरी सांसें ही रुक गयीं. 

इसे मुझे तुम्हें भेजते हुए किसी भी तरह की शर्म महसूस नहीं हुई और न ही मैं तुमसे कुछ छुपाना चाह रहा था.’

एडविना ने इसका जवाब भी लिखा था. 

दोनों के बारे में एक और किस्सा मशहूर है. 

बताते हैं कि एक बार वे नेहरू के साथ नैनीताल गई थीं. 

जब उस वक्त उत्तर प्रदेश के गवर्नर का बेटा उन्हें शाम के भोजन पर आमंत्रित करने आया, तो उसने दोनों को आलिंगन में बंधे हुए देखा. 

यह किस्सा उस वक्त राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चा में रहा था. 

एडविना से रिश्ते के कारण नेहरू का राजनैतिक जीवन दांव पर लग गया था. 

उस वक्त एडविना ने ही नेहरू को समझाया था. 

कहा जाता है कि एक बार जिन्ना को किसी ने सलाह दी थी कि वे नेहरू और एडविना के रिश्ते को विभाजन में अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करें. 

तब जिन्ना ने यह कहते हुए ऐसा करने से मना कर दिया कि यह रिश्ता एक निजी मामला है और वे इसका राजनैतिक इस्तेमाल नहीं करेंगे. 

नेहरू और एडविना की दोस्ती की गहराई को समझने के लिए एक घटना का जिक्र और किया जा सकता है. 

आजादी के बाद जब माउंटबेटन हिंदुस्तान से विदा हो रहे थे तो उससे एक दिन पहले भारत सरकार ने उनके सम्मान में डिनर दिया था. 

यहां पर नेहरू ने एडविना के सम्मान में एक भाषण दिया था. 

इस भाषण में उन्होंने कहा था कि — 

‘...ईश्वर या किसी परी ने तुम्हें यह ख़बूसूरती, यह बुद्धिमत्ता, यह सौम्यता, यह आकर्षण और ऊर्जा दी है. और यही नहीं, तुम्हें इससे भी ज़्यादा मिला है और वह है - एक कमाल का इंसानी ज़ज़्बा और लोगों की सेवा का भाव. 

इन सब ख़ूबियों के मिले-जुले असर ने तुम्हें एक शानदार महिला बनाया है...’ 

इस भाषण को सुनने के बाद एडविना रो पड़ीं और नेहरू भी रो दिए थे. 

एडविना बाद में कई बार हिंदुस्तान आईं और जब भी नेहरू इंग्लैंड गए माउंटबेटन परिवार से जरूर मिलते थे. 

दोस्तो, एक बार एडविना बहुत बीमार पड़ीं और अपने ऑपरेशन से पहले उसने अपने पति माउंटबेटन को वे सारे ख़त दे दिए थे जो नेहरू ने उन्हें लिखे थे. 

सारी चिट्ठी देते हुए उसने कहा कि अगर वे नहीं बचीं तो आप इन चिट्ठियों से वो वह सब जान सकते हैं जो कभी मेरे और नेहरू के बीच रहा है. 

इस घटना के बाद एडविना ज़्यादा समय ज़िंदा नहीं रही थीं. 

21 फ़रवरी 1960 की सुबह साढ़े सात बजे उन्होंने आख़िरी सांस ली. 

उन्हें दिल का दौरा पड़ा था. 

एडविना को समुद्र में दफ़नाया गया था. 

एडविना की इच्छा थी कि उनको समुद्र में दफनाया जाए. 

भारत से नेहरू ने एडविना की अंतिम यात्रा के लिए गेंदे के फूलों के एक पुष्पचक्र के साथ हिंदुस्तानी जहाज़ ‘त्रिशूल’ भेजा था.

नेहरू का जन्मदिन 14 नवंबर और एडविना का 28 नवंबर है. 

दोनों की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई थी. 




इतिहास के पन्ने से जवाहर लाल नेहरू और एडविना का किस्सा इतिहास के पन्ने से जवाहर लाल नेहरू और एडविना का किस्सा Reviewed by yogesh on 10:03:00 PM Rating: 5

1 comment:

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